स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
बिछु्आ
बिछुआ के विभिन्न नाम
संस्कृत में- वृश्चिक, हिन्दी में- बिछुआ, गुजराती में- बिछुओ
लेटिन में -Martynia annua (मारटाईनिया एन्युआ)
बिछुआ का संक्षिप्त परिचय
बिछुआ एक सामान्य पौधा है जो हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह पौधा वर्षा ऋतु में उत्पन्न होता है तथा अक्टूबर-नवम्बर तक समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यह पौधा एकवर्षीय होता है। यह शाकीय पौधा होता है। इसकी ऊँचाई 2 फीट तक होती है। इसका तना सीधा होता है, जो हाथ के अंगुष्ठ की मोटाई से अधिकतम 2 गुना मोटा होता है। यह हरा होता है।
अल्पकाष्ठीय अर्थात् लकड़ी की न्यून मात्रा वाला होता है। इसी तने पर बड़ी-बड़ी साधारण प्रकार की पत्तियाँ लगती हैं। पत्तियाँ चौड़ी, हरी तथा जालीय नाड़ी विन्यास वाली होती हैं। ये एकान्तर क्रम से जमी होती हैं। तने के ऊपरी हिस्से में गुलाबी वर्ण के नली के समान पुष्प लगे होते हैं जो कि बाद में हरे-हरे फलों में परिवर्तित हो जाते हैं। सूख जाने पर फल के अन्दर से किसी पक्षी की खोपड़ी के समान रचना निकलती है। इस रचना में पीछे की ओर 2 बिच्छू के डंक के समान नुकीली रचनायें होती हैं। इसलिये इसे बिछुआ कहते हैं। इसकी जड़ें जमीन में ज्यादा गहरी नहीं होतीं हैं। ये मूसला प्रकार की होती हैं किन्तु छितरी रहती हैं। इनमें केशरियापन होता है।
बिछुआ के धार्मिक महत्त्व
> किसी भी शुभ मुहूर्त में बिछुआ के फल तोड़ लें। इन्हें सूर्य के प्रकाश में रख दें। 2-4 दिनों में इनके सूखने पर इनके ऊपर का खोल फट जायेगा, छितर जायेगा। उसे सावधानी से हटाने के पश्चात् भीतर से किसी पक्षी की खोपड़ी के समान जो रचनायें निकलेंगी उन्हें सहेजकर रख लें। इस रचना को किसी डिब्बी में थोड़ा सा सिंदूर लगा कर रखने से उस घर में तंत्र-मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है।
> शुभ मुहूर्त में निकाली गई इस रचना को जिस किसी भी जातक का विवाह होने वाला हो, उस पर से 7 बार उसार कर जल में प्रवाहित कर देने से उसका विवाह निर्विघ्न सम्पन्न होता है। विवाह का सम्पूर्ण कार्यक्रम में नज़रदोष के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।
बिछुआ का ज्योतिषीय महत्त्व
> ज्योतिष शास्त्रानुसार बिछुआ की जड़ शनिग्रह की पीड़ा के उपचारार्थ प्रयुक्त की जाती है। शनि से पीड़ित व्यक्तियों को ज्योतिष शास्त्र में नीलम रत्न पहनाया जाता है। जो व्यक्ति उसके महंगे होने के कारण नीलम धारण नहीं कर सकते, वे शुभ मुहूर्त में बिछुआ की जड़ को खोद कर ले आयें। इसे एक नीले अथवा काले वस्त्र के माध्यम से अपनी भुजा में बांध लें अथवा इसकी जड़ के एक टुकड़े को ताबीज में भरकर काले रेशमी डोरे के साथ गले में लटका लें। ऐसा करने से उन पर से शनि का कुप्रभाव समाप्त होता है।
> बिछुआ की मूल को किसी भी दिन शुभ मुहूर्त में निकाल लें। निकालने के पूर्व प्रार्थना करें कि हे मूल, मैं आपको मेरे कल्याणार्थ लेने आया हूँ। आप मेरे साथ चलें तथा मेरा कल्याण करें। ऐसी प्रार्थना कर उसे जल अर्पित करें, कुछ पीले चावल भी डालें और फिर निकालकर घर ले आयें। इसे भली प्रकार से साफ करके रख लें। इस जड़ को शनि से पीड़ित व्यक्ति कुछ समय तक अपने स्नान के जल में डाले रहे और फिर निकाल लें। इस जड़ को अगले दिन प्रयोग के लिये रख लें तथा उस जल से स्रान कर लें। ऐसा 40 दिनों तक करने से शनि का कुप्रभाव समाप्त होता है।
बिछुआ का वास्तु में महत्त्व
वास्तुशास्त्र के अनुसार बिछुआ के पौधे का घर की सीमा में होना अशुभ कारक नहीं होता है। इसके घर में पनपने पर शनिवार को इसे अगरबत्ती लगाना तथा इसके फल बनने पर उन्हें रखना शुभ है।
बिछुआ का दिव्य प्रयोग
बिछुआ का फल विशेष महत्त्व का होता है। यह फल सूखने पर काला हो जाता है तथा किसी कीड़े के समान दिखाई देता है। इसमें बिच्छू के डंक की भांति 2 कांटे सामने की ओर रहते हैं। इस फल को किसी भी शुभ मुहूर्त में पौधे से निकाल लें अथवा जब भी ये प्राप्त हो उसके पश्चात् किसी भी शुभ मुहूर्त में उन पर थोड़ा सा इत्र लगाकर उन्हें अगरबत्ती का धुआं दे दें। साथ ही ॐ शनैश्वराय नमः मंत्र की 1 माला जाप करके उन्हें अभिमंत्रित कर दें। इस अभिमंत्रित फल को पास में रखने वाला शनि की पीड़ा से मुक्त रहता है। जिन लोगों की पत्रिका में शनि नीच राशि का हो अथवा जिन्हें शनि की साढ़ेसाती चल रही हो ऐसे व्यक्तियों को इसे पास में रखने से वे शनि के कुप्रभाव के शिकार नहीं होते हैं। उनके कार्यों में उत्पन्न होने वाली बाधायें दूर होने लगती हैं।
किसी बच्चे को नज़र का प्रभाव हो तो इन अभिमंत्रित फलों को उसके पास रखने से उनका कल्याण होता है। किसी भी प्रतिष्ठान में एक काले वस्त्र में ऐसे 5 फलों को लटकाने से वह नजर आदि के दोष से मुक्त रहता है।
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- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
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